जॉली एलएलबी के 10 साल पूरे होने पर सौरभ शुक्ला ने अपने प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरुस्कार जीतने को याद किया और बताया कैसे जॉली एलएलबी ने लोगों को उम्मीद दी क्योंकि यह प्रेरणादायक था।
अभिनेता सौरभ शुक्ला के लिए जॉली एलएलबी (2013) एक बहुत विशेष फिल्म है क्यूंकि इस फिल्म ने ही उन्हें एक्टिंग के दुनिया में वापस लाया था। बैंडिट क्वीन (1994), सत्या (1998) जैसी फिल्मों के बाद भी उन्हें अच्छे रोल्स नहीं मिल रहे थे। “मैं अपने करियर में एक ऐसे दौर में था जहां लोग मुझे बोलते थे आप एक अच्छे एक्टर हैं बूत मुझे अच्छे रोल्स नहीं मिलते थे और इसलिए मैंने फैसला किया था की मैं अब सिर्फ लिखूंगा और कोई भी एक्टिंग जॉब नही लेने का निर्णय लिया था।
बर्फी (2012) और जॉली एलएलबी ने उनके करियर की दिशा बदल दी। उन्होंने कहा, “सुभाष कपूर (निर्देशक) ने मेरे साथ जॉली की स्क्रिप्ट शेयर की और मुझे जज का रोल ऑफर किया, मेरा चेहरा उतर गया क्यूंकि मैंने सोचा की ये रोल ज़्यादा नहीं होगा पर नरेशन के बाद मैंने अपना मन बदल लिया क्यूंकि स्क्रिप्ट जज की भूमिका को एक कार्डबोर्ड करैक्टर के रूप में नहीं दिखाया गया है। मैंने उनसे बोलै, की और नहीं करेगा यह रोल, आप किसी और एक्टर के पास नहीं जायेंगे। फिल्म के शूटिंग के दौरान मेरा बहुत अच्छा समय बीता और लोगों ने फिल्म और मेरे करैक्टर को काफी प्यार दिया जिससे मुझे नेशनल अवार्ड मिला और ऐसे मेरा एक्टिंग में इंटरेस्ट वापस आया।”
इस फिल्म में बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए नेशनल फिल्म अवार्ड जीतने पर कहा की, अवार्ड्स उत्साहजनक हैं हालांकि सत्यापन एक बुरा शब्द है”, लेकिन उन्हें लगता है कि “सेट पर प्रदर्शन का उच्च प्रदर्शन बेजोड़ है”। “जब आपको कोई पुरस्कार मिलता है तो आप दुनिया में शीर्ष पर महसूस करते हैं क्योंकि यह आपके विश्वास और विकल्पों की पुन: पुष्टि करता है। फिर भी, सच्चाई यह है कि एक दृश्य करते समय एक एड्रेनालाईन रश होता है जिसे किसी और चीज़ से मेल नहीं किया जा सकता है, यही असली सौदा है। एक और बात जो मुझे फिल्म के बारे में पसंद आई वह यह है कि यह लो नोट पर समाप्त नहीं हुई। इसने लोगों को आशा दी और प्रेरणादायक था।”