‘कालकूट’ एक एंटरटेनिंग थ्रिलर है, जो एक समर्पित पुलिस अधिकारी रविशंकर त्रिपाठी के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। विजय वर्मा स्टारर यह सीरीज ओटीटी प्लेटफार्म जियो सिनेमा पर रिलीज हो चुकी है। चलिए जानते हैं कैसी है यह सीरीज!
क्या है इस सीरीज की कहानी?
इस वेब सीरीज में एपिसोड दो किरदारों के माध्यम से थके -हारे सिस्टम को दिखाने का प्रयास किया गया है पहले एपिसोड की शुरुआत पारुल श्वेता त्रिपाठी से जिस पर एपिसोड अटैक किया गया है. फिर हमारी मुलाकात होती है स्पेक्टर रवि शंकर त्रिपाठी से विजय वर्मा यानी कि विजय वर्मा जी ने वर्दी के साथ आने वाले गर्मी भी पसंद नहीं होती वह 3 महीने से पुलिस की नौकरी इस्तीफा देना कि सोच रहे हैं।
लेकिन समस्या यह है कि उनका सीनियर उनका इस्तीफा नहीं रहा ऐसे में उनकी मां उनके पीछे शादी का नारा लेकर लगी हुई है घर और नौकरी दोनों से काफी परेशान हैं रविशंकर त्रिपाठी और परेशान होने के बाद भी आखिरकार पारुल का केस अपने हाथों से ही ले लेते हैं और भ्रष्ट सिस्टम ओर शादी की प्रेशर में वें खुद के मन में अटैक विक्टिम पारुल का केस हल कर लेंगे या नहीं यह देखने वाला है।
कैसी है कलाकारों की एक्टिंग?
श्वेता त्रिपाठी शर्मा ने एसिड अटैक सर्वाइवर, पारुल के किरदार में शानदार और इमोशनल परफॉर्मेंस दी है। वह अपने किरदार की भावनाओं को सामने रखने में सफल रही हैं। श्वेता के किरदार के चेहरे पर एसिड अटैक के निशान बहुत ही असली लगे हैं। इसके लिए प्रोस्थेटिक आर्टिस्ट धनंजय प्रजापति की मेहनत की तारीफ होनी चाहिए। यशपाल शर्मा और गोपाल दत्त भी पुलिस अधिकारी के किरदार में हैं और अपने रोल को बखूबी निभा गए हैं।
विजय वर्मा को हमने हाल ही क्राइम-थ्रिलर ‘दहाड़’ में एक साइको सीरियल किलर के रूप में देखा है। ऐसे में इस बार पुलिस बनकर एसआई रविशंकर के रूप में उन्हें स्क्रीन पर देखना अच्छा लगता है। वह एक ईमानदार पुलिसकर्मी की भूमिका न सिर्फ निभाते हैं, बल्कि किरदार की मुश्किलों को भी बखूबी बयान करते हैं। रविशंकर की मां के रोल में सीमा बिस्वास अच्छी लगती हैं। वह अपने बेटे के लिए एक आदर्श लड़की ढूंढने और उसे सेटल होते देखने की चाहत रखती हैं।
कैसा है निर्देशन?
अरुणभ कुमार और सुमित सक्सेना ने रोजमर्रा की जिंदगी में होने वाली घटनों को कहानी में काफी अच्छे और मार्मिक तरीके से पिरोया है। सुमित सक्सेना के निर्देशन में बनी यह सीरीज अच्छी है, हालांकि अंतिम अंतिम तक कहानी उलझी नजर आती है।
रिव्यू
यह वेब सीरीज एक वास्तविक अनुभव है। ऐसा किसी के साथ भी हो सकता है। समाज में यह पहला मामला नहीं है। हर दिन ऐसे कितने मामले दर्ज होते हैं। लेकिन सिस्टम की मार के कारण न्याय की गुहार दबी रह जाती है। जिसके साथ घटनाघटती है, उसे जीवन भर इसे झेलना पड़ता है। श्वेता के किरदार की बेबसी निराशाजनक है। दूसरी ओर, विजय वर्मा द्वारा निभाया गया रवि का किरदार एक मासूम व्यक्ति का किरदार है, जो सिस्टम के अहंकार, उसकी बदमाशी, उसके रवैये और उसके तौर-तरीकों से चिढ़ता है। लेकिन उसे भी इसका एक हिस्सा बनकर रहना होगा। यह वेब सीरीज एक आम आदमी की कशमकश पर आधारित है। जिससे हर आम आदमी जुड़ना चाहेगा।
शुरुआती पांच एपिसोड तक ‘कालकूट’ एक मजेदार और सॉलिड वेब सीरीज लगती है। लेकिन, फिर पांच एपिसोड के बाद कहानी उलझ जाती है। आठ एपिसोड में थके-हारे सिस्टम की हकीकत, भ्रष्टाचार के सबूत देते-देते वह ट्रैक से हट जाते हैं। यही कारण है कि आखिरी एपिसोड तक आते-आते कई चीजें गैर-जरूरी लगने लगती हैं।
रेटिंग 2/5