मिथुन चक्रवर्ती के बेटे नमोशी चक्रवर्ती की डेब्यू फिल्म ‘बैड बॉय’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। फिल्म का निर्देशन राजकुमार संतोषी ने किया है। इस फिल्म की शूटिंग 2019 में ही पूरी हो चुकी थी पर कोरोना महामारी की फिल्म रिलीज नहीं हो पाई थी। इस फिल्म से नमोशी के साथ साथ निर्माता साजिद कुरैशी की बेटी अमरीन को भी बॉलीवुड में लॉन्च किया गया है।
फिल्म हिंदी सिनेमा के पुरानी लव स्टोरी जैसी ही है। जिसमें बाप अपने बेटी के लवर से घर का खर्चा उठाने को कहता है।
चलिए जानते हैं क्या है फिल्म की कहानी: ‘बैड बॉय’ टिपिकल बालीवुड की कॉमेडी फिल्म है। एक खुशमिजाज और नासमझ लड़का रघु (नमाशी चक्रवर्ती) और एक अमीर, खूब पढ़ी-लिखी, लेकिन सीधी-सरल लड़की ऋतुपर्णा (अमरीन) प्यार में हैं। लेकिन उसके पिता बनर्जी (सास्वत चटर्जी) इस प्यार की राह में कांटे की तरह हैं। वो अपने बेटी के लवर को कहते हैं की कबाड़ी का बिजनस करने वाले के बेटे को उनकी बेटी से शादी करनी है, तो उसे ‘हाई क्वालिटी’ और ‘हाई स्टैंडर्ड’ होना होगा। अब रघु को एक चैलेंज दिया जाता है। उसे एक महीने के लिए बनर्जी के घर का खर्च उठाना है, ताकि वह यह समझ सकें कि रघु उनकी बेटी ऋतुपर्णा को एक आरामदायक जीवन दे सकता है। अब क्या बनर्जी का यह चैलेंज रघु पूरा कर पाएगा?
रिव्यू: कहानी खुद राजकुमार संतोषी ने लिखी है। न्यू मिलेनियल्स की पसंद के हिसाब से फिल्म की कहानी कम से कम 30 साल पुरानी है।
फिल्म के फर्स्ट हाफ में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो आपने आज से पहले पर्दे पर नहीं देखा है। फिल्म की कहानी घिसी पीटी कही जा सकती है। हां, ऋतु को रिझाने और उसकी पिता की मांगों पर चालाकी से काम करने वाला रघु अच्छा लगता है। एक ईमानदार जीवन जीने के लिए उसकी कड़ी मेहनत बहुत ही भाग्यशाली और सुविधाजनक लगती है। सेकेंड हाफ में कहानी रफ्तार पकड़ती है। फिल्म में कॉमेडी को खूब जगह दी गई है। दिग्गज कॉमेडियन जॉनी लीवर एक गुंडे और ऋतु के मामा पोल्टू के रोल में मजेदार हैं। उनकी कॉमिक टाइमिंग में आप शायद ही कोई कमी निकाल सकेंगे। राजपाल यादव भी कैमियो रोल में हैं, लेकिन वह उस अवतार में नहीं हैं, जिसके लिए वो जाने जाते हैं।
फिल्म के स्क्रीनप्ले में खामियां हैं। कहानी रुक-रुक कर बढ़ती है। कई जगह अपनी रफ्तार खो देती है। पूरी फिल्म में हमें बॉलीवुड की अन्य दूसरी फिल्मों की याद आती है, क्योंकि पर्दे पर जो हो रहा है, वह हम अक्सर पर्दे पर देखते रहते हैं। गाने और डांस के मामले में भी मामला रूटीन है। एक सेट फॉर्मूले पर सबकुछ सेट है। प्लॉट को मजेदार बनाने के लिए डायलॉग वाले कलरफुल पोस्टर्स का इस्तेमाल किया गया है, जो अच्छा लगता है। फिल्म में कुछ मजेदार डायलॉग्स और सीन हैं, जो सेकेंड हाफ में दिखाई देते हैं।
परफॉर्मेंस: नमाशी और अमरीन की केमिस्ट्री स्क्रीन पर अच्छी लगती है। दोनों का पर्दे पर यह पहला मौका है और दोनों ही प्रॉमिसिंग लगे हैं। इनसे आगे उम्मीदें की जा सकती हैं। नमाशी ने इमोशनल सीन्स में बढ़िया काम किया है। वह पिता की तरह एक अच्छे डांसर भी हैं। उनमें पिता मिथुन चक्रवर्ती की झलक देखने को मिलती है। अमरीन कुरैशी आंखों को सुकून देती हैं और बड़ी ईमानदारी से उन्होंने अपना काम किया है। पिता के रोल में शाश्वत चटर्जी बस एक ही सुर में हैं, और वह आगे क्या करने वाले हैं इसका अनुमान भी आसानी से लगाया जा सकता है। राजेश शर्मा के किरदार में गहराई है और वह दर्शकों का अटेंशन खींचते हैं।
टेक्निकलिटीज: फिल्म की सिनेमैटोग्राफी बहुत ही औसत है और फिल्म के कला निर्देशन व कॉस्ट्यूम विभाग ने भी फिल्म को मौजूदा दौर की फिल्म बनाने के लिए मेहनत नहीं की है।
म्यूजिक: हिमेश रेशमिया का म्यूजिक काफी सूदिंग है। लेकिन सभी गानों में ‘जनाबे अली’ और ‘आलम ना पूछो’ लोगों को पसंद आ रहे हैं। हिमेश लंबे समय बाद एक बार फिर अपने रोमांस किंग वाले म्यूजिक के साथ वापस आए हैं। पर म्यूजिक थोड़े और बेहतर हो सकते थे। फिल्म के गाने सुनने के बाद लगते हैं की ये किसी गाना का याद दिलाती है।
रेटिंग्स: 2/5