फिल्म ‘तरला ’ मशहूर शेफ पद्मश्री तरला दलाल के जीवनी पर आधारित है। इस फिल्म में हुमा कुरैशी तरला के किरदार में हैं। तरला के किरदार में हुमा लोगों के मनोरंजन का तड़का लगाने के लिए अपनी फिल्म से आ चुकी हैं। ‘तरला दलाल’ आज ओटीटी प्लेटफार्म जी 5 पर रिलीज हो चुकी है। चलिए जानते हैं कैसी है फिल्म?
क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म शुरू होती है तरला(हुमा कुरैशी) के कॉलेज लाइफ से, एक मिडल क्लास की लड़की जो बड़े सपने देखती है, जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहती है, लेकिन इसी बीच उसकी शादी हो जाती है। तरला की शादी नलिन(शारिब हाशमी) से हो जाती है, नलिन पेशे से इंजीनियर है।
अब कहानी आगे बढ़ती है की कैसे कॉलेज जाने वाली एक लड़की शादी के बाद खाना बनाना सीखती है, और ऐसा खाना बनाने लगती है की वो लोगों के लिए मिशाल बन जाती है। फिर तरला कुकिंग क्लास खोलती है, लेकिन तरला को यह क्लास बंद करनी पड़ती है। इसके बाद क्या हुआ, कैसे आम तरला बनीं पद्मश्री तरला दलाल जानने के लिए देखें जी 5 पर तरला दलाल!
कैसा है कलाकारों की एक्टिंग?
हुमा कुरैशी ने हमेशा अपनी ऐक्टिंग से दिल जीता है चाहे वह ‘मोनिका ओह माई डार्लिंग’ या फिर ‘डबल एक्सल’ या फिर ‘बदलापुर’। हुमा ने हर बार की तरह इस बार भी अपनी ऐक्टिंग से दिल जीत रही हैं। हुमा तरला दलाल के किरदार को जी रहीं हैं। उनका एक्टिंग वाकई काबिले तारीफ है।
हुमा के पापा खुद एक रेस्टोरेंट चेन के मालिक हैं तो हुमा को कुक का किरदार निभाने में और भी ज्यादा मदद मिली होगी क्योंकि वो बचपन से ही खाना बनता हुआ देख रहीं हैं। उन्होंने खुद जिया और आज परदे पर लोगों को भी बता रहीं की खाना बनाना भी एक आर्ट है। शारिब की भी एक्टिंग काफी अच्छी है, उन्होंने एक आइडियल पति का किरदार निभाया जो पत्नी को सपोर्ट कर रहा है। बाकी कलाकारों ने भी अच्छा काम किया है।
कैसा है निर्देशन?
इस फिल्म का निर्देशन पीयूष गुप्ता ने किया है, पियूष ने ही ‘छिछोरे’ और ‘दंगल’ जैसी फिल्में लिखी हैं। इस फिल्म को भी पीयूष ने ही लिखा है और निर्देशन भी किया है। पीयूष ने वाकई बहुत अच्छा काम किया है, कैसे उन्होंने एक सिंपल कहानी को अच्छे से परदे पर, उतारा इसके लिए पियूष तो तारीफ के हकदार हैं।
रिव्यू
फिल्म ‘तरला दलाल’ एक सिंपल और अच्छी कहानी है, यह फिल्म देखने के बाद लोग कहेंगे बहुत दिन बाद ऐसी अच्छी फिल्म आई है। फिल्म में एक्टिंग से लेकर डायरेक्शन बहुत ही उम्दा है। हुमा और शारिब ने तो एक्टिंग से दिल जीत लिया है।
फिल्म को इफेक्टिव बनाने के लिए संवाद बहुत ही अच्छे लिखे गए हैं, जैसे एक सीन में शारिब कहते हैं की इस देश में लोग महिलाओं को लक्ष्मी मानते हैं लेकिन घर के आगे लक्ष्मण रेखा खींच देते हैं। वहीं एक सीन में हुमा कहती हैं, ‘खाना बनाना एक काम माना जाता है, लेकिन असल में यह एक आर्ट है’। फिल्म के संवाद बहुत ही मीनिंगफुल है। फिल्म में पति-पत्नी का साथ वाकई बहुत अच्छी तरह से दिखाई गई है। फिल्म में कहीं थोड़ी कमी रह गई तो वो होगी इसका म्यूजिक पार्ट। फिल्म शुरू होने पर प्लॉट बनाने में टाइम लगा जिससे शुरू के 20 मिनट थोड़ी स्लो हो जाती है।
कुल मिलाकर कहें तो यह फिल्म एक बार जरूर देखी जानी चाहिए ताकि जिनको लगता हो की खाना बनाना बस काम नहीं है, यह एक आर्ट है। वहीं यह उनको भी देखना चाहिए जिनको लग रहा हो की जिंदगी किचन में ही बीत रही है।